Tuesday 31 December 2019

यह साल भी न बिल्कुल तुम्हारे इश्क़ की तरह निकला

फोटो स्त्रोत - इंटरनेट  
यह साल भी न बिल्कुल तुम्हारे इश्क़ की तरह निकला मेरे लड़खड़ाते, बहकते कदमों को ठहरना सिखाया मैं तन्हा ही चल रहा था कि साथ- साथ चलना सिखाया अकेले - अकेले जीने की जगह अपनों के साथ रहना सिखाया बेवजह, बेमकसद और बे परवाह जिंदगी को संजीदगी से जीना सिखाया यह साल भी न बिल्कुल........ मुझे सिखाया लड़ना, झगड़ना, जीने का मकसद दिया बहुत मुश्किल था मेरे लिए खुद को बदलना तुम्हारे जाने के बाद लेकिन मैं बदला बिल्कुल वैसे ही जैसे तुम्हारे इश्क़ में बदला था और इस साल ने भी मुझे ऐसे ही बदल दिया जैसे तुम्हारी जिद ने बदला था यह साल भी न बिल्कुल....... सच कहूं इसने (साल ) मुझे तुम्हारी कमी का एहसास तक न होने दिया मैं फिर से मुस्कुराना सीख गया, वक़्त वैसे ही गुजरता मेरा जैसे तुम्हारे साथ गुजरता था। घंटे सेकेंड, हफ्ते दिन और महीने हफ्तों की तरह कब गुजर गए पता ही नहीं चला अपने सारे गमों को भूल कर मैं हर लम्हें को जीना सीख गया था यह साल भी न बिल्कुल........ सर्द मौसम था, मैं और वक्त साथ चल रहे थे, अचानक ही एक मोड़ पर यह साल रुक गया। मेरा हाथ छुड़ाते हुए बोला, अब मैं साथ नही चल सकता आगे का सफर तुम नए साथी और नई उम्मीद के साथ तय करना यह साल भी न बिल्कुल........ उसके यह कहते ही तुम्हारा चेहरा, तुम्हारी आखिरी मुलाकात का मंजर याद आ गया। जब तुमने ऐसे ही मेरा हाथ छोड़ते हुए कहा था मैं तुमसे प्यार तो करती हूँ लेकिन ज़िन्दगी जीने के लिए सिर्फ इश्क़ की काफी नही। आज मैं फिर वही आकर खड़ा हो गया हूं जहां तुम छोड़ के गई थी। यह साल भी न बिल्कुल........ तुम्हारे इश्क़ का दर्द, तड़प, और बेवफाई जंजीरों से बंधा मैं, आज़ाद होने ही वाला होता हू कि तुम्हारा हां तुम्हारा ही यह झूठा, एहसान फरामोशी वाला प्यार किसी न किसी बहाने मेरे सामने आ जाता है, जैसे इस गुजरते साल के शक्ल में मेरे सामने आ गया। यह साल भी न बिल्कुल........ तुम्हारे इश्क की तरह यह साल भी बेवफा और झूठा निकला जीना, हंसना सीखा कर फिर से मेरे दिल को बेजान कर गया जीने की ललक और साथ रहने की ख्वाहिश को पल भर में तोड़ गया नहीं सोचा था कि तुमसे भी ज्यादा कोई बेरहम होगा लेकिन अब और नहीं, न किसी की आदत का हिस्सा बनूंगा न किसी बेवफा की कहानी का किस्सा बनूंगा तुम हो, वक्त हो या फिर कोई और क्यों न हो मैं अब अकेला तन्हा ही इस नए साल में बसर करूंगा #सहर #हैप्पी_न्यू_ईयर, #नया_साल_मुबारक_हो #welcome2020 #byebye2019 #happy_new_year

Saturday 30 November 2019

हीरो बनने के लिए खुद लिखी फिल्म की कहानी

बनारस का साधारण सा लड़का विनीत सिंह आज एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में फिल्मों से लेकर वेब सीरीज तक में अपनी धाक जमा रहा है। वह बॉस्केटबॉल के नेशनल प्लेयर रह चुके हैं। पिता के सपनों को पूरा करने के लिए डॉक्टर भी बने। हालांकि, उनका सपना तो ऐक्टिंग करना था, जिसको पूरा करने के लिए वह 1999 में मुंबई गए। मुंबई में पहचान बनाने की जद्दोजहद के बीच छोटे-छोटे रोल किए। 'गैंग ऑफ वासेपुर' में दानिश के किरदार से पहचान मिली पर उतनी नहीं जितने के वह हकदार थे। स्ट्रगल करते-करते साल दर साल बीतते गए। जब कोई मुख्य किरदार नहीं मिला तो खुद के लिए ही कहानी लिख डाली। आखिर में उनकी लिखी हुई फिल्म मुक्काबाज ने ही उनको पहचान दिलाई। एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में आज अपना अलग मुकाम बना चुके ऐक्टर विनीत के बॉलिवुड के सफर की कहानी भी कम फिल्मी नहीं है। वह इन दिनों लखनऊ में तेलुगू की सुपरहिट फिल्म के हिंदी रीमेक की शूटिंग कर रहे हैं। हमसे उन्होंने लखनऊ प्रेम, इंडस्ट्री में अपने स्ट्रगल और करियर में आते उतार-चढ़ाव को लेकर बात की।




मेरे लिए यह फिल्म नई है

यह फिल्म तमिल का रीमेक है, जो एक नए सब्जेक्ट पर है। सोशल मीडिया से जुड़े लोग इस फिल्म से खुद को जोड़ पाएंगे। असल में सोशल मीडिया पर हम आप सामने वाले को उतना और वैसा ही जानते है जितना वह बताता और दिखाता है। इसमें थ्रिलर के साथ कई ऐंगल है। एक ऐक्टर के तौर पर जब मैंने फिल्म की कहानी सुनी तो मैं काफी एक्साइट हुआ।  फिल्म में मैं पुलिस वाले का लीड रोल कर रहा हूं। फिल्म को सुसी गणेशन ही बना रहे है जिन्होंने तमिल में इसको बनाया था। फिल्म की शूटिंग लखनऊ में ही होनी है और यहीं की कहानी भी है।

मुझे स्ट्रगल ने निर्भीक बना दिया

मैं किसी भी रोल को करने से पहले ही उसकी तैयारियां शुरु कर देता हूं। अगर मुक्काबाज की बात करें तो उस फिल्म के किरदार के लिए मैंने दो ढाई साल पहले से ही तैयारियां शुरु कर दी थी। मुक्काबाज लिखने के दौरान मैंने मुंबई को अपना घर बना लिया था अगर मुंबई में ही काम मिलता था तो करता था वरना नहीं करता था। इन सबके बीच मेरे सारे पैसे खत्म हो गए थे। फिल्म की कहानी लेकर मैं अनुराग कश्यप के पास गया, अनुराग सर ने कहा था 'अगर बॉक्सर नही बनोगे तो फिल्म नहीं बनाऊंगा'। मैं किसी को मौका नहीं देना चाहता था इसलिए मैंने मुंबई में रहते हुए जितना कमाया था, जो भी खरीदा था, उस सबको बेचकर बॉक्सिंग की तैयारी के लिए पाटियाला चला गया। अब मेरे पास खोने को कुछ बचा नहीं था। उसके बाद मेरी लाइफ में जो सबसे बड़ा बदलाव आया वह यह कि मैं निर्भीक हो गया। इन परिस्थितियों ने मुझे बहुत मजबूत बना दिया।

मेरी तो अभी शुरुआत हुई है

मैंने फिल्म इंडस्ट्री में करीब करीब 19 साल दिए हैं, लेकिन मेरा मानना है कि मेरी असल शुरुआत मुक्कबाज के बाद ही हुई है। मुक्काबाज को रिलीज हुए डेढ़ साल हुए है, उसके बाद मैंने बार्ड ऑफ ब्लड, गोल्ड, सांड की आंख, आधार, कारगिल गर्ल गुंजन सक्सेना, बेताल को मिलाकर यह आठवां प्रॉजेक्ट है जो मैं कर रहा हूं। मुक्काबाज से पहले भी मैंने कई फिल्में की है लेकिन आज मैं कई फिल्मों में बतौर लीड काम कर रहा हूं। उस अकेली मूवी ने मुझे मेरे दस साल वापस कर दिए हैं। अब मैं जिसके साथ एक बार काम करता हूं तो वह दुबारा जरुर बुलाते है। पहले मौका नहीं मिलता था अब एक मौके के बाद दूसरा भी मिल रहा है। एक ऐक्टर के तौर मेरे लिए यह बहुत अच्छा है।

ईमानदारी से किरदार निभाता हूं 

एक अभिनेता के तौर पर मेरी कोशिश रहती है कि मैं हमेशा कुछ नया करुं। मैं कोई चैलेंजिंग रोल एक्स्पेट करता हूं तो उसको पूरा करने के लिए, उस किरदार को ईमानदारी से निभाने के लिए मेहनत से पीछे नहीं हटता। बार्ड ऑफ ब्लड में वीर का किरदार मेरे लिए नया होने के साथ काफी चैलेंजिंग भी था। उसमें मुझे पश्तो बोलना था। इस किरदार के लिए मैंने पश्तून लोगों का रहन सहन, बोली, उनका संगीत, खान पान सब सीखा। ताकि अपने किरदार के साथ जस्टिस कर सकूं। अगर महिला प्रधान फिल्मों की बात करें तो मेरा मानना है कि ऐक्टर के लिए उसमें भी करने को बहुत कुछ रहता है। सांड की आंख में डॉ यशपाल का किरदार ही फिल्म का सूत्रधार है। इसके अलावा कारगिल गर्ल गुंजन में मेरा किरदार काफी अहम है। मेरा मानना है कि संतुलन बहुत जरूरी है। फिल्म में किरदार, कहानी, सबका संतुलन होना चाहिए। मैं व्यक्तिगत तौर पर मानता हूं कि लिंग, जाति, क्षेत्र की वजह से किसी भी इनसान को रोका नहीं जाना चाहिए। सबको बराबरी का हक मिलना चाहिए। मेरी बहन स्पोर्ट्स प्लेयर है मैं उसको खिलाने ले जाता था और खुद ग्राउंड में बैठा रहता था।

मैं सारी स्क्रिप्ट पढ़ता हूं 

मेरे पास जितनी भी स्क्रिप्ट आती हैं उनका रोल करुं या ना करुं लेकिन मैं उनको पढ़ता जरुर हूं। एक ऐक्टर के तौर पर मुझे पढ़ने से काफी फायदा मिलती है। मैंने कई बड़े ऐक्टर के साथ काम किया है।  अक्षय कुमार के साथ गोल्ड किया वह बहुत ही खुशमिजाज है मैं तो उनसे कहता था कि आपने खुश रहने का टेंडर ले लिया है। हर कलाकार में कुछ न कुछ यूनिक होता है। मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि उनसे कुछ न कुछ सीख सकूं।


  बस सब होता गया

मैं जो परिस्थितियां होती हैं उनमें बेहतर करना चाहता हूं। यहीं मेरी कोशिशें मुझसे बेहतर करवाती है। ऐसे ही जब मेरे बारे में लीड रोल के लिए लोग नहीं सोच रहे थे तब मैंने खुद सोचा और अपने लिए कहानी लिखी। ऐसे ही परिस्थितियां बनती गई और मैं काम करता गया। मेरे बहन भी लिखती है मुक्काबाज हम दोनों ने मिलकर लिखी। मेडल जीतने के बाद दुनिया सलाम करती है लेकिन उस मेडल जीतने के पहले की कहानी जो होती है न वह सबसे महत्वपूर्ण होता है। अगर आगे लिखने की बात करुं तो अभी मैं इतना व्यस्त हूं कि लिखने के लिए वक्त ही नहीं रहता। हां मेरी बहन जो लिखती है उसको पढ़ता जरुर हूं। अगर अपने पसंदीदा लेखकों की बात करुं तो पुराने राइटर बहुत पसंद है उनकी लेखनी बहुत ही जबरदस्त थी। लेकिन वक्त के साथ बदलाव भी आता है आज के दौर में गुलजार साहब कमाल के लेखक है।

भेदभाव खिलाड़ियों को तोड़ देता है

मैं एक नेशनल प्लेयर हूं मैंने खेल को बहुत करीब से देखा है। जब मैं मुक्काबाज की ट्रेनिंग कर रहा था तो उस दौरान भी कई बच्चें ऐसे थे जिनके साथ भेदभाव किया गया। यह भेदभाव खिलाड़ियों को अंदर से तोड़ देता है। आज भी कई जगहों पर ऐसा ही भेदभाव होता है। इसको रोकने के लिए बहुत सख्त कदम उठाने की जरुरत है। इसके अलावा मैं कहना चाहता हूं कि आप खिलाड़ी हो न हो लेकिन मैदान में जरुर जाएं। वहां जाकर आप हार जीत के साथ रोज उठते है और आगे की तैयारी करते है। ऐसे में आप सीखते है कि हार होने पर हतोत्साहित व जीतने पर अतिउत्साहित  न होकर एक सामान्य बर्ताव कैसे करते है। खेल हमें अनुशासन के साथ सामाजिक और मानसिक दोनों तौर पर मजबूत बनाता है। 

यूपी का माहौल बहुत फ्रेंडली है

यहां पर शूटिंग का माहौल बहुत फ्रेंडली है। यहां के लोग डिस्टर्ब नही करते है वो शूटिंग के दौरान आएंगे तो थोड़ी देर रुकते है और फिर चले जाते है। इसके अलावा जिस तरह से सरकार का सहयोग मिल रहा है। यहां का माहौल है, उसके चलते शूटिंग बहुत हो रही है। जिसकी वजह से रोजगार मिल रहा है। नए कलाकारों को मौका मिलता है। यहां के लोग हर क्षेत्र में शुरु से आगे रहे है। अब फिल्म इंडस्ट्री के यहां आ जाने से बहुत से प्रतिभाओं को मंच मिल रहा है।

केडी सिंह में खेली थी स्टेट चैंपियनशिप

लखनऊ से मेरी बहुत सारी यादें हैं। पहली बार जब मैं बनारस से खेलने के लिए निकला था तो सबसे लखनऊ आया था। केडी सिंह स्टेडियम पहले बॉस्केटबाल कोर्ट अंदर हुआ करता था। जहां पर स्टेट चैंपियनशिप खेली थी। यहां से नेशनल के लिए सिलेक्ट हुआ था। यहां पर कैंप लगा था हॉस्टल में रहते थे। उस ग्राउंड से बस एक ही बिल्डिंग नजर आती थी जो क्लार्क होटल की थी। इसके अलावा यहां पर एक नेक्सन मार्केट लगती थी जहां पर स्पोर्ट्स का वह सामान मिलता था जो कहीं और नहीं मिलती थी। जैसे ही हम लोगों को कैंप से वक्त मिलता था तो कोच से रिक्वेस्ट करके शॉपिंग के लिए चले जाते थे। इसके अलावा लड्डू चाणक्य के यहां पर मट्ठा पीते थे। अभी जब हम लोग हनुमान सेतु पर शूटिंग कर रहे थे तो मैंने सबसे पहले बोला की पहले मट्ठा मंगवा लें। यहां की मेरे से जुड़ी इतनी कहानियां हैं कि बता नहीं सकता। आज भी सुबह सुबह मैं केडी सिंह स्टेडियम जाता हूं वहां आराम से बैठता हूं।

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मुझे ऐक्टिंग पसंद है इसलिए पूरी तैयारी के साथ इंडस्ट्री में आया हूं


एक मंजिल, एक रास्ता और एक ही लक्ष्य। फिल्म इंडस्ट्री में अपने काम के दम पर पहचान बनाना। अपने इस जुनून को पूरा करने के लिए अक्षय ओबेरॉय ने खुद को थिएटर में मांझा और फिर अपनी मंजिल के सफर पर निकल पड़े। पोर्टफोलियो लेकर कास्टिंग डायरेक्टर से लेकर फिल्म डायरेक्टर तक के यहां चक्कर लगाए। लाइनों में लगकर ऑडिशन दिए। खुद को एक अच्छा अभिनेता बनाने के लिए अंग्रेजी से तौबा की और घर पर उसे बोलने पर डांट भी खाई। बॉडी लैंग्वेज पर महीनों काम किया। उन्होंने बार कोड, द टेस्ट डे, सिलेक्शन डे समेत कई वेब सीरीज में काम किया लेकिन असली पहचान उन्हें 'गुड़गांव' ने दी। 14 साल की उम्र में‘अमेरिकन चाय’ में परेश रावल के साथ काम करने और 2010 में फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने वाले अक्षय ओबरॉय का नाम बॉलिवुड के बेहतरीन ऐक्टरों में शुमार है। करीब एक महीने से शहर में वह दो फिल्में तमिल रीमेक थिरुत्तु पायले-2 और रिचा चड्ढा के साथ शूटिंग कर रहे हैं। उनसे हुई खास बातचीत में उन्होंने अपने फिल्मी करियर को लेकर हमसे की खास बातचीत।


पूरी तैयारी के साथ इंडस्ट्री में आया हूं
मैं अमेरिका में पैदा हुआ और वहीं पला बढ़ा। चौदह साल की उम्र में 2002 में फिल्म अमेरिकन चाय से मैंने ऐक्टिंग की शुरूआत की थी। फिल्म में परेश रावल ने मेरे फॉदर का रोल किया था। वो सेट पर अखबार पढ़ते थे एक दिन उन्होंने कहा कि कुछ पढ़ते नहीं हो मैंने कहा नहीं तो उन्होंने कहा कि एक ऐक्टर को पढ़ना चाहिए। उसके बाद उन्होंने मुझे पास बुलाया और पूछा कि ऐक्टिंग में इंट्रेस्टेट हो तो तुम्हे इस चीज की पढ़ाई करो ऐक्टिंग एक क्राफ्ट है इसको समझे बगैर ऐक्टिंग नहीं होगी। फिर मैंने उसके बाद थियेटर में बीए इन इकनॉमिक्स किया। मेरे पिता कहते थे कि अगर तुम भाषा नहीं बोल पाओगे तो ऐक्टर कैसे बनोगे। तो मेरे घर पर इंग्लिश नहीं बोली जाती थी अगर गलती से बोल देता था तो पिता जी की डांट सुनने को मिलती थी। मैं इंडस्ट्री में आने से पहले ही भाषा पर फोकस के साथ डांस, ताइक्वांडो सब सीख लिया था जो एक हिंदी फिल्म हीरो के लिए जरूरी होता है। शुरू से मैं ऐक्टिंग के लिए पागल था इसलिए पूरी तैयारी करके आया था।

थिएटर ऐक्टर को खोलता है
पृथ्वी थिएटर व किशोर नामित कुमार से ट्रेनिंग ली।  इस दौरान मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। थियेटर ऐक्टर को खोलता है। इसका सबसे बड़ा फायदा की आपको ऑडियंश का रिएक्शन तुरंत का तुरंत मिलता है। उसके बाद आप उसमें बदलाव कर सुधार कर सकते है। जैसे टाइमिंग, रिदम, लैंडिंग ऐक्टर के लिए बहुत जरूरी होता है, जो हमे थिएटर में सीखने को मिला। मकरंद देशपांडे के साथ बैक स्टेज काफी काम किया। उनसे मैंने काम के प्रति समर्पण सीखा। अगर किसी भी चीज को पाना है तो उसके लिए पागलों की तरह जुट जाओ। मैंने अमेरिका में भी थिएटर किए , लेकिन भाषा का फर्क बहुत है। वैसे मुझे फिल्मों से बहुत प्यार है। फिल्मों से ज्यादा रिएलिटी दिखा सकते है। ऐक्टिंग आंखों का खेल है।

पोर्ट फोलियो लेकर घूमता था
फिल्मों में रोल के लिए मैंने बहुत डायरेक्टर व कास्टिंग डायरेक्टर के चक्कर लगाए है। मैंने तो वो ऑडिशन भी दिए है जब ऑडिशन में आए लोगों को नाम से नहीं बल्कि नंबर से पुकारा जाता था। जहां पर बॉडी बिल्डिंग वाले गोरे स्मार्ट लड़कों की लाइन लगी रहती थी। वहां पर मैं पोर्टफोलियो लेकर बैठा रहता था। मैंने बहुत नॉर्मल शुरूआत की। मुझे पता चलता है कि कोई बड़ा डायरेक्टर या कोई अच्छे कांसेप्ट पर फिल्म बना रहा है तो मैं जाकर खड़ा हो जाता हूं और कहता हूं कि सर मैं भी हूं। फिल्म गुड़गांव के वक्त मैं फिल्म फितूर की शूटिंग कर रहा था। अजय रॉय एक फिल्म प्रॉड्यूस करने वाले थे शंकर रमन के साथ गुड़गांव। काफी समय से इसकी चर्चा थी। मुकेश छाबड़ा इसकी कास्टिंग कर रहे थे तो मैं कश्मीर से टिकट बुक के सीधे मुंबई पहुंचकर शंकर के सामने बैठ गया और बोला सर मैं कर लूंगा। लैंग्वेज प्रॉब्लम भी नहीं आएगी क्योकि मैंने भाषा पर बहुत काम किया। असल मैं मेरा फेस और आंखें देखकर कोई भी मुझे इस रोल के लिए कास्ट नहीं करता। लेकिन अजय और शंकर दोनों ने मेरा काम देखा था तो उन्होंने मुझे मौका दिया। गुड़गांव मेरी लिए टार्निंग प्वांइट रही। 

वेब सीरीज हमारी फिल्मों से मिलता जुलता है
वेब सीरीज हमारी फिल्मों की तरह है। आज के समय में जो डायरेक्टर फिल्म बना रहे हैं वहीं वेब सीरीज भी बना रहे है। अगर टीवी की बात करें तो टीवी आज हमारी फिल्मों व वेब सीरीज से काफी अलग हो गया है। मेरी फिल्म कालाकांडी जब रिलीज हुई तो उस वक्त नेटफ्लिक्स अमेजन की शुरूआत हुई थी। मैं वर्कहॉलिक इंसान हूं मुझे काम करने में मजा आता है। वेब सीरीज को देखकर लगा कि इसमें मैं कुछ भी कर सकता हूं अपने को एस्क्प्लोर कर सकता हूं। फिर मैं लग गया काम में और इस साल मैं चार वेब सीरीज कर चुका हूं। वेब सीरीज इंटरटेंटमेंट का फिल्मों के बाद दूसरा प्लेटफॉर्म है। आने वाले समय में वेब ओटीटी का ही दौर है। बार कोड वेब सीरीज का 75 मिलियन व्यू है। वहीं, सेंसरशिप न होने से ऐक्टर को एक्स्प्लोर करने करने आजादी मिलती है। लेकिन इसका मतलब यह भी नहीं है कि हम जबरदस्ती थोपने लगे। अगर सेंसरशिप लगती है तो फिर यह फिल्मों से अलग नहीं रह जाएगा।

पीरियड फिल्म करने का शौक
मुझे पीरियड फिल्म करनी है। जो न मेरी भाषा है और न ही मेरा लुक। न आज की तरह के लोग न रहन सहन, कहना का मतलब है कि आज के दौर से बिल्कुल अलग जो दौ सौ साल पुरानी हो उसको करना चाहूंगा। मुझे वो कपड़े पहनने है वो भाषा बोलनी है जो हमारी नहीं है। असल मैं यह एक बहुत बड़ा चैलेंज होता है एक ऐक्टर के लिए और मुझे इस तरह का चैलेंजिंग रोल करना बहुत पसंद है। इसके अलावा अगर किशोर कुमार की बायॉपिक बने तो मैं उसको करना चाहूंगा। इसके अलावा अगर फेवरेट ऐक्टर की बात करें तो मुझे संजय मिश्रा के साथ काम करने में मजा आया। उनके अंदर जो एक कलाकार है वो हर जगह हर रोल में फिट हो जाता है। इसके अलावा इरफान खान मुझे बहुत पसंद है।

इस वक्त लखनऊ में दो फिल्में कर रहा हूं
मैं इससे पहले भी लखनऊ आ चुका हूं। छोटे नवाब करके एक मूवी आने वाली है उसकी शूटिंग के लिए आया था। लेकिन इस बार मेरा लखनऊ का लंबा शेड्यूल हो गया है क्योंकि मैं सूसी गणेशन की मूवी के साथ सुभाष कपूर की फिल्म की शूटिंग एक साथ कर रहा हूं। करीब दो महीने का शेड्यूल है। इस दौरान लखनऊ को बहुत करीब से जानने का मौका मिला। यहां का खाना मुझे बहुत पसंद है। यहां का जो भी डिशेज फेमस है उसको टेस्ट कर चुका हूं। इसके अलावा यहां की भाषा बहुत प्यारी है। अब तक जितना सुना था उससे ज्यादा महसूस किया। तरक्की के साथ अपने कल्चर को किस तरह संजो के रखा जाता है वो लखनऊ वालों से सीखना चाहिए।


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हिंदू सच बोले तो देशद्रोही अगर मुस्लिम बोले तो आतंकवादी



 उर्दू साहित्य में मुनव्वर राना एक ऐसा नाम हैं, जो न सिर्फ सच लिखते है बल्कि बेबाकी से उसको बोलते भी है। उनकी अंदाज ए बयां से लेकर लिखने तक की कला के लोग दिवाने है यहीं वजह है कि उनका साहित्य सिर्फ उर्दू तक ही सीमित न रहकर कई भाषाओं में लिखा गया है। मौजूदा समय में वो अपनी आटोबायोग्राफी मीर आके लौट गया पार्ट टू लिख रहे है। उनके जन्मदिन पर उनसे खास बातचीत में उन्होंने उर्दू साहित्य से लेकर पाकिस्तान और देश के मौजूदा हालात पर खुलकर अपने विचार रखें।


हिंदू सच बोले तो देशद्रोही मुस्लिम बोले तो आतंकवादी

हमने जब अवार्ड वापस किया था उस वक्त अवार्ड वापसी गैंग नाम दे दिया गया। तब भी मैंने कहा था आज भी कह रहा हूं कि अकबर जाहिल था लेकिन उसके पास नव रत्न थे मोदी जी पढ़े लिखे है लेकिन उनके पास नवरत्न नहीं है। मुल्क को मुल्क बना ले या मुल्क को तमाशा बना ले यह आप पर निर्भर करता है। यहां हमेशा कोई जीत पर नहीं रहता है। आवाज में सच होना जरूरी है। सत्तर सालों में देश को क्या से क्या बना दिया। बदले की राजनीति से हमेशा देश का नुकसान होता है। पूरा मुल्क में ऐसे लोग हो गए है जो पल भर में आपको पाकिस्तानी बना देगे। सच बोलने वाला अगर हिंदू है तो देशद्रोही और मुसलमान है तो आतंकवादी कह दिया जाता है। आज हमारे देश के संस्कार की वैल्यू गिर गई।


सोशल मीडिया से उस्तादी का दौर खत्म
सोशल मीडिया से पैदा हुआ शायर परंपराओं से वाकिफ नहीं होता है। गुरू सिर्फ शेर कहना नहीं सिखाता है, जो चीजें मां, बुजुर्गों, धर्म गुरूओं से छूट जाती है, उसको साहित्य का गुरू सिखाता है। सोशल मीडिया पर तुकबंदी वाले शेर होते है, जिसको समझे बगैर लोग लाइक कर वाह वाह करने लगते है। अब लाइक से शेर की अहमियत को आंकते है। जो गलत परंपरा है। उस्तादी शायरी का दौर अब खत्म हो चला है। सोशल मीडिया की वजह से हमारा नुकसान यह हुआ कि परफेक्ट शायरों की कमी हो गई है। आज जल्दबाज बच्चे है। मैच्योर नहीं है जबकि शायरी के लिए मैच्योर होना जरूरी है। वहीं सोशल मीडिया पर पाकिस्तानी रूमानी शायरी का दौर चल रहा है, यह शायरी हमारे यहां 40 साल पहले ही कही जा चुकी है। पाकिस्तान के शायरों की शायरी में इश्क की तड़प, एहसास ही नजर आता है। उससे अच्छी शायरी हमारे यहां साहिर कहते थे। लेकिन, साहिर को पढ़ा नहीं गया, क्योकि उनमें प्रोग्रेसिव राइटर भी था। युवा साहिर की रूमानी शायरी के आगे गालिब, मीर भी नहीं है। युवा अवस्था में साहिर ने लिखा ' जब तुम्हें मुझसे ज्यादा है जमाने का ख्याल, फिर मेरी याद में यूं अक्श बहाती क्यों हो, तुम में हिम्मत है तो दुनिया से बगावत कर दो वरना मां बाप जहां कहते है शादी कर लो' इस तरह की शायरी का दौर बहुत पुराना रहा है।

शायरी के लिए संतो और फकीरों की संगत जरूरी
मुझे याद है करीब पांच साल पहले मैं एक प्रसार भारती के प्रोग्राम में गया था उस वक्त 22 जुबान रजिस्टर्ड थी जो पूरे भारत में बोली जाती थी। हमारे यहां के कवि व शायरों के मुकाबले बाहर के कवि शायरों की सोच काफी अलग है। यहां का कवि व शायर राम जन्मभूमि, बाबरी मस्जिद के आगे सोच ही नहीं रहा है। वैसे ही आज के मुशायरे और कवि सम्मेलन मदरसिया हो गए है। हमारे समय में मुशायरा सुनने आने वाले लोगों में 30 परसेंट गैर मुस्लिम आते थे। इसलिए हम मान के चलते थे कि अच्छा सुनाना है। शायरी एक अलग चीज है उसको जानने समझने के लिए संतो,फकीरों, दरवेशों में नहीं बैठेंगे तब तक शायरी नहीं आएगी। अब लोग इन सब से दूर हो गए है इसलिए हमारे यहां की शायरी में खराबी आई है।

Saturday 23 November 2019

मैं वक्त हूं मेरे कदम से कदम मिलाकर चलिए


किसी की बाज़ी कैसी घात
वक़्त का पाँसा वक़्त की बात 

शौकत परदेसी का शेर  मेरे स्वभाव और चरित्र को बयां करता है। महाराष्ट्र की राजनीति में मेरा सबसे अहम किरदार रहा है मैं हमेशा से ही मौके की नजाकत के साथ रहा हूं। कभी कांग्रेस के साथ मेरा बहुत अच्छा गठबंधन रहा। आजादी के बाद से लंबे समय तक मैं कांग्रेस के साथ रहा। इसलिए नहीं कि मैं रहना चाहता था बल्कि इसलिए क्योकि कांग्रेस ने मेरे कंधे से कंधा मिलाकर चाल चली। फिर उसे खुदा होने का एहसास होने लगा और वो मुझे अपने इशारे पर चलाने की कोशिश की । लेकिन
फोटो स्त्रोत - इंटरनेट 
उसको एहसास नहीं था कि मैं रूकने वालों में नहीं न ही किसी के इशारे पर चलना वाला। मैं तो एक सधी हुई चाल और बंधे हुए कदमों पर ही चलता हूं। इसलिए कांग्रेस रूक गई और मैं आगे निकल गया और मेरे कदमों की ताल से भाजपा ने अपने कदम मिला लिए। 2014 से लेकर अब तक भाजपा ने मेरा हर मौके पर, हर मोड़ पर, हर जगह पर सही इस्तेमाल किया। इसका मतलब यह नहीं कि मैं उसके साथ हूं बस मेरा इस्तेमाल भाजपा ने सबसे सही तरीके से किया। आप जानना चाहते है कि मैं कौन हूं तो बताता हू मैं वक्त हूं, 

मेरा कब, कहां और कैसे इस्तेमाल किया जाए यह आप पर निर्भर करता है। कई लोग कहते है कि मैं उनके साथ हूं। लेकिन ऐसा नहीं है मैं तो हर एक के साथ हूं आप के साथ हूं, सामने वाले के साथ हूं, आपके दुश्मन के भी साथ हूं और आपके मित्र के साथ भी हूं। मैं उसके साथ भी हूं जो नहीं मानता कि मैं उसके साथ हूं। खैर जब लोग कुछ हासिल नहीं कर पाते है, तो मेरी बुराई ही करते रहते है। मुझे इसकी आदत हो गई है। जब वह हासिल करने से चूक जाते है तो अपने को गंगा जल जैसा पवित्र बताकर मां गंगा में गिरने वाले सीवेज की गंदगी की तरह  सीधा इल्जाम मेरे ऊपर लगा देते है कि मेरा वक्त सही नहीं था। अगर वक्त सही न होता तो आप वो सोच ही नहीं पाते जो आप सोच रहे है। मैं फिर आप से कहूंगा कि मेरे यानि वक्त के साथ चलने में ही भलाई है मैं इसलिए नहीं कह रहा हूं कि मैं बहुत ही बलवान हूं, घमंडी हूं, निर्दयी हूं बल्कि इसलिए कह रह रहा हूं कि ताकि आप आगे बढ सके। आप अपने कदमों खुद रोक देते हैं और कहते है कि मेरा वक्त न साथ नहीं दिया तो मुझे बहुत तकलीफ होती है। असल में मैं आपके लक्ष्य खाेने का कारण नहीं होता हूं बल्कि आप खुद होते है  क्योकि आप अपने निर्णय लेने की क्षमता खो देते है, इतने इल्जाम लगने के बाद भी मैं बार बार आपको मौका देता रहता हूं। आगे निकल जाने के बाद भी मैं आपको आवाज देता हूं कि अभी भी मेरे साथ आ सकते हो बस चलने की जगह थोड़ी सी दौड़ लगानी पड़ेगी जब आप दौड़ के मेरे पास आ जाएंगे तो यकीन मानिए मैं आपके साथ फिर से कदम से कदम मिला कर चलने लगूंगा। लेकिन आप तो उठते ही नहीं है किस्मत और मेरे सहारे बैठे रहते है। मैं तो घड़ी की सुई के हिसाब से चलता हूं जब आप मेरे सहारे बैठे रहते है तब मैं सेकेंड दर सेकेंड आपके लक्ष्य से आपको दूर लेके जाता हूं लेकेिन मैं आपका दुश्मन नहीं हूं आप रूक सकते है मैं नहीं । मेरा तो चलते रहना ही नियति है। अगर मैं रूक गया तो यह ब्रह्मांड रूक और मैं इतना स्वार्थी नहीं हूं कि सिर्फ आप के लक्ष्य की पूर्ति के लिए मैं पूरे ब्रहमांड को ही खतरे में डाल दूं इसलिए मैं न चाहते हुए भी चलता रहता हूं। भले ही गलत व्यक्ति ही मेरा फायदा क्यों न उठा ले। हमारे साथ चलना ही होगा क्योकि अगर आप मेरे साथ नहीं चलेेगें तो हमारे आप के कदमताल नहीं मिल पाएंगे जिससे न एक जैसी धुन निकलेगी और ना ही एक जैसी चाल होगी। या तो आप पीछे रह जाएंगे या हम। इस कारण कई गलत लोग जो मेरा इस्तेमाल करना सीख जाते है मैं न चाहते हुए भी उनके साथ चलने लगता हूं। 
आखिर में आपके लिए शहरयार जी का यह शेर पेश कर रहा हूं 
वक़्त को क्यूँ भला बुरा कहिए
तुझ को होना ही था जुदा हम से।।

#maharashtrapolitics #shivseena #ncp #congress #politics #waqt #samay 

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mohammad.fazil
9918811757
fazil1688@gmail.com

Monday 18 November 2019

दोस्ती ही प्यार है !

सुनो ना़.....अरे सुनो तो तुम मेरी कोई बात ही नहीं सुनते हो.....अभी तुम्हारी गर्लफ्रेंड कहती तो सारे काम छोड़ देते। वह फोन पर मुझे बोले जा रही थी मैं उसको समझा रहा था कि ऐसा नहीं है तुम मेरी दोस्त हो तुम्हारी जगह अलग है और मेरी गर्लफ्रेंड
photo- इंटरनेट
की जगह अलग। तुम दोनों ही मेरे लिए इम्पॉटैंट हो। तभी वो गुस्से में बोली...अच्छा तेरह साल हो गए हमारी दोस्ती को आज तक मैं ही तुम्हारे लिए सबसे ज्यादा इम्पॉटैंट थी अब छह महीने पहले बनी तुम्हारी गर्लफ्रेंड भी मेरे इतनी ही इम्
पॉटैंट हो गई वाह..... एक दो महीने बाद तो तुम मुझे भूल ही जाओगे मैंने उसकी बात काटते हुए कहा कि अरे पागल हो क्या ऐसा कैसे हो सकता है। तुम बात को अलग वे में लेकर जा रही हो। अच्छा सुनो अब कल बात करता हूं यार सुबह ऑफिस जल्दी जाना है। मेरी बात सुनकर वह बोली़..... हम्मम अब तो तुमको नींद आएगी ही ऐसे तो पूरी पूरी रात मुझसे बात किया करते थे साफ बोलो न कि गर्लफ्रेंड से बात करनी है। मैं खुद ही फोन रख देती अब जाओ तुम बात करो गुड नाइट। इससे पहले मैं कुछ कह पाता उसने फोन ही डिस कनेक्ट कर दिया। मैं सोच रहा था कि आखिर ऐसा क्या हो गया पहले तो यह सही से बात करती थी। कुछ मिनट बात उसकी एक मिस्ड कॉल आ गई मैंने पलट कर फोन किया। फोन उठाते ही वह बोली, तुमको तो नींद आ रही थी। मुझे फोन डिस कनेक्ट करे करीब दस मिनट हो गए और तुम अभी तक जग रहे हो। मैं गुस्से में उसके ऊपर चिल्लाया दिमाग खराब है तुम्हारा । आज हुआ क्या है तुम्हें कुछ भी बोले जा रही हो बात करनी है तो करो वरना फोन रखो बेवजह मेरा दिमाग मत खराब करो। कुछ देर तक दोनों तरफ सन्नाटा छा गया फिर मैंने बोला अच्छा बताओ तुम क्या कह रही थी कौन सी बात बतानी थी बताओ सुन रहा हूं मेरी बात खत्म होते ही वो बोल पड़ी कि सुनो तुम अपनी गर्लफ्रेंड से रिलेशन खत्म कर दो क्योंकि वो लड़की तुम्हारे लिए सही नहीं है। मैं उसकी बात सुनकर चौक गया अरे तुम्हारी ही तो दोस्त है तुमने ही तो हमें मिलवाया था आज कह रही हो रिलेशन खत्म कर दो हुआ क्या। वह बोली... बस मैं कह रही हूं न कि तुम खत्म कर दो आज के बाद उससे बात मत करना अगर तुम मना नहीं कर पा रहे हो तो मैं ही उसको बोल देती हूं और हां मैं मजाक नहीं कर रही हूं अगर उससे बात करना है तो मुझसे मत करना। अब यह तो उससे ही बात कर लो या मुझसे। एक मिनट के लिए तो मैं एकदम चुप हो गया। उसने मुझसे वो करने को कहा जो मैं कभी नहीं कर सकता। वह जानती थी कि मैं उससे चाहे जितना लडूं झगड़ा करू मगर उसको कभी छोड़ नही सकता। मेरी इसी कमजोरी का वो हर बार फायदा उठाती थी और मुझसे हर काम यही कह कर करवा लेती थी कि या तो वो या तो मैं। आज भी वही जीत गई।

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किस्मत कनेक्शन ऐसा कि किस्मतपर हो गया यकीन

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कैब आ गई है आराम से जाना, हॉस्टल पहुंचकर मुझे फोन करना और अपना ख्याल रखना। ठीक है मां कहते हुए मैं जल्दी से नीचे आ गया। शेयरिंग कैब होने के की वजह से उसमें पहले कोई बैठा था जिसको देखकर एक मिनट के लिए मैं रूक सा गया। कैब में एक खूबसूरत सी लड़की बैठी थी। उसकी आंखें समंदर सी गहरी थी। खुले बाल काले बादलों की तरह घने हुए थे, उसके माथे पर लगी बिंदी जैसे किसी ने चांद में काला टिका लगा दिया हो। मैं उसको देखे ही जा रहा था एक बार तो लगा शायद गलत कैब की तरफ आ गया हूँ। तभी कैब ड्राइवर ने आवाज देते हुए कहा कि भइया आप आगे बैठ जाएं। उसकी आवाज सुन कर मेरा ध्यान उसकी तरफ गया। आगे का गेट खोलते हुए मैं बैठ गया लेकिन बार बार उसको देखने का दिल कर रहा था अब मुड़ मुड़ के देखना भी अच्छा नही लग रहा था इसलिए मैं गाड़ी में लगे शीशे में उसको निहारने लगा। कैब रेलवे स्टेशन की ओर चल दी। मेरे घर से रेलवे स्टेशन की ओर जो रोड जाती है ना भाई साहब क्या बताऊँ इतने गड्ढे इतने गड्ढे है कि अच्छे खासे इंसान की हालत खराब हो जाए। लेकिन उस दिन मुझे एक भी झटका महसूस न हुआ। कैब वाला आपNई धुन में चलाए जा रहा था और मैं अपनी धुन में उसको निहारे जा रहा था। झटके से कभी वो इधर हिलती तो कभी उधर कभी बालो को सही करती तो कभी अपने बैग को संभालती। ऐसे ही हम रेलवे सटेशन के पास पहुच गए। रेलवे स्टेशन के पास बहुत जाम लगा था तो ड्राइवर बोला, कि ट्रॉफिक बहुत है रास्ता खुलने में एक घंटा लग सकता है, स्टेशन सौ मीटर ही रह गया है आप लोग चाहे तो यहीं उतर जाए। मैं तो तुरंत उतर गया क्योकि ट्रैन का समय हो रहा था। लेकिन वो बोली कि मेरे पास दो बैग है एक बहुत भारी है मैं कैसे ले जाऊंगी। मैंने उससे कहा कि अगर प्रॉब्लम न हो तो मैं आपकी हेल्प कर सकता हूं मुझे भी स्टेशन ही जाना है। एक मिनट के लिए तो वह चुप हो गई फिर बोली ओके.... मैंने उसका बैग पीठ पर लादा और अपना बैग हाथ में पकड़ कर चल दिया। आप लोग तो जानते ही होंगे हॉस्टल में रहने वाले लड़को का बैग कितना भारी होता है बस एक जीन्स और 2 टीशर्ट में पूरा महीना निकाल देते है। बीस इतना ही सामान मेरे पास भी था। लेकिन उसका बैग बहुत भारी था मगर मैंने चेहरे पर शिकन नही आने दी आखिर डूड वाला लुक भी तो देना था। कुछ देर में स्टेशन पहुंच गए मैने उसको बैग दिया तो उसने मुझे बस मुस्कुराते हुए थैक्यू बोला। घर से स्टेशन तक के करीब एक घंटे के सफर के दौरान मेरी उससे बस इतनी ही बात हुई। मैं स्टेशन पर पहुंचकर वहां बने वेटिंग रूम में ट्रैन का इंतजार करने लगा। मेरे दिल और दिमाग में उसका ही चेहरा घूम रहा था, तभी मेरे पीछे से एक आवाज आई एक्सक्यूज मी, मैंने पीछे मुड़कर देखा तो कैब वाली लड़की मेरे सामने खड़ी थी, इससे पहले। मैं कुछ समझ पाता उसने कहा क्या मैं यहां बैठ सकती हूँ। मैंने सिर हिलाकर उसको बैठने को कहा। कुछ देर चुपचाप बैठने के बाद मैंने हिम्मत करके उससे पूछा आप कहां जा रही हो तो वह बोली, जयपुर मैं वहां स्टडी करती हूं। मैंने कहा अच्छा मैं भी जयपुर में ही स्टडी कर रहा हूं। इसके बाद हम लोगों की बातचीत शुरु हुई। अभी दस मिनट ही हुए थे कि हमेशा घंटो लेट आनी वाली ट्रेन अपने सही समय पर आ गई। मैंने कहा चलो ट्रैन आ गई है।आप की सीट किस कोच में है ? उसने बोला एस फोर । इत्तेफाक देखें कि ट्रैन में हम दोनों की सीट भी एस फोर कोच में आमने सामने ही थी। तब मुझे एहसास हुआ कि कि कुछ तो किस्मत कनेक्शन है जो हम बार बार मिल रहे है। लखनऊ टू जयपुर सफर के दौरान हम दोनों के बीच काफी बातें हुई जब हम जयपुर पहुंचे तो वह स्टेशन के बाहर आकर ऑटो बुक करने लगी और मैं रूक कर उसको देखने लगे तभी वह पीछे मुड़कर बोली, आप के साथ सफर अच्छा रहा,वक़्त का पता ही नही चला। मैंने कहा हां लेकिन वक़्त बहुत जल्दी गुजर गया। वो बोली अच्छा वक्त ऐसे ही गुजर जाता है। मैंने कहा दुबारा यह अच्छा वक्त कब आएगा। वह बोली ऐसे ही किस्मत में लिखा होगा तो हो जाएगा। मैंने कहा कि, किस्मत लखनऊ से यहां तक एक साथ ले आई। अब किस्मत पर और कितना यकीन करें। वह हंसने लगी और बोली तो अब क्या करें, मैंने कहा कि अब हमें अपना नंबर एक्सचेंज कर लेना चाहिए ताकि आगे किस्मत के मिलाने का इंतजार न करना पड़े..... इस बात को करीब पांच साल से ज्यादा हो गए। अब हमें मिलने के लिए किस्मत का इंतजार नही करना पड़ता। एक बात तो बताना ही भूल गया उस दिन से मैं किस्मत में यकीन करने लगा हूँ।

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